Brij Bhushan Sharan Singh: भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण के लिए यह साल शुरू से मुसीबतें लेकर आया। जनवरी में उनके खिलाफ महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया। ये पहलवान ओलिंपिक मेडल विजेता थे। बृजभूषण शरण सिंह बैकफुट पर आ गए। उनके खिलाफ आरोपों पर जांच कमिटी बनी, इसकी रिपोर्ट आने के बाद पहलवान फिर मैदान में हैं।
लखनऊ: भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह (Brij Bhushan singh) की मुश्किलें बढ़ रही हैं। महिला कुश्ती पहलवानों के यौन शोषण (Women wrestler protest) मामले में दिल्ली पुलिस उन पर एफआईआर दर्ज करने जा रही है। भारत के सॉलिसिटर जनरल ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में यह जानकारी दी। बृजभूषण सिंह के खिलाफ विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया और साक्षी मलिक जैसे पहलवान जंतर-मंतर पर 6 दिनों से प्रदर्शन पर बैठे हैं। इन्हीं पहलवानों ने बृजभूषण शरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की है। कपिल सिब्बल इन पहलवानों के वकील हैं।
यह मुद्दा इस साल जनवरी से उठा था, तब भी पहलवान धरने पर बैठे थे। इससे पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस करके उन्होंने कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ सीधे-सीधे आरोप लगाए थे। पहलवानों के समर्थन में और भी आवाजें उठने लगीं तो सरकार ने जांच समिति गठित करके कार्रवाई का आश्वासन दिया। पहलवान शांत हो गए। तय समय से काफी देर के बाद जब जांच समिति की रिपोर्ट आई तो पहलवान उससे संतुष्ट नहीं दिखे। इसके बाद ये खिलाड़ी फिर से धरने पर बैठ गए हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। जो लोग बृजभूषण शरण सिंह के राजनीतिक रसूख को समझते हैं वे जानते हैं कि इसके पीछे क्या मजबूरियां हो सकती हैं
यह मुद्दा इस साल जनवरी से उठा था, तब भी पहलवान धरने पर बैठे थे। इससे पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस करके उन्होंने कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ सीधे-सीधे आरोप लगाए थे। पहलवानों के समर्थन में और भी आवाजें उठने लगीं तो सरकार ने जांच समिति गठित करके कार्रवाई का आश्वासन दिया। पहलवान शांत हो गए। तय समय से काफी देर के बाद जब जांच समिति की रिपोर्ट आई तो पहलवान उससे संतुष्ट नहीं दिखे। इसके बाद ये खिलाड़ी फिर से धरने पर बैठ गए हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। जो लोग बृजभूषण शरण सिंह के राजनीतिक रसूख को समझते हैं वे जानते हैं कि इसके पीछे क्या मजबूरियां हो सकती हैं
1. चार संसदीय सीटों पर है असर
बृजभूषण शरण सिंह कैसरगंज सीट से सांसद हैं। वह तीन अलग-अलग संसदीय सीटों से जीत चुके हैं। अब 2024 का लोकसभा चुनाव करीब है। बृजभूषण साल 1991, 1998, 1999 में गोंडा से जीते। इसके बाद साल 2004 में बलरामपुर (अब श्रावस्ती) से जीते। हालांकि, साल 2008 में न्यूक्लियर डील के वक्त बीजेपी छोड़कर सपा के पाले में गए और मनमोहन सिंह सरकार बचाने में भूमिका रही। पार्टी बदलने के बाद भी उनके जनसमर्थन में कमी नहीं आई, और 2009 में सपा में रहकर भी कैसरगंज सीट से जीते।
इसके बाद साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद वापस बीजेपी में लौटे। फिर 2014 और 2019 में बीजेपी से कैसरगंज सीट से जीत दर्ज की। यानी बृजभूषण शरण सिंह का कुल मिलाकर श्रावस्ती, बहराइच, गोंडा और कैसरगंज सीट पर सीधा असर है। बीजेपी के लिए 2024 के लोक सभा चुनाव में एक-सीट की बहुत अहमियत है। ऐसे में वह बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कोई भी कदम उठाने में हिचक रही है।
2. सपा को टक्कर देने की तैयारी पर पड़ सकता है असर
2024 के चुनाव में बीजेपी उन सीटों को जीतने की तैयारी कर रही है, जहां सपा का दबदबा रहा है। जैसे- मैनपुरी, रामपुर, आजमगढ़, रायबरेली। ऐसे में अगर बृजभूषण सिंह पर कोई सख्त ऐक्शन होता है या पार्टी से बाहर होते हैं तो बीजेपी के लिए अवध क्षेत्र की कई सीटों पर मुश्किल आ सकती है। ऐसे में सपा को टक्कर देना तो दूर ये सीटें भी हाथ से निकल सकती हैं।
3. दागी तो हैं लेकिन दोषी नहीं
बृजभूषण सिंह का राम मंदिर आंदोलन से जुड़ाव रहा है। बाबरी विध्वंस मामले में वह आडवाणी, जोशी, कल्याण और उमा भारती समेत 40 आरोपियों में से थे। इस मामले में सीबीआई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। अभी बृजभूषण सिंह दागी तो हैं लेकिन किसी केस में दोषी नहीं हैं।
4. राम मंदिर आंदोलन से जुडे़ रहे हैं
राम मंदिर आंदोलन के दौरान आडवाणी की रथयात्रा में अयोध्या और आसपास के इलाकों में सक्रिय रहे थे। 1991 में जब पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था तो उन पर 34 केस दर्ज थे। उस वक्त बीजेपी ने उन्हें गोंडा का रॉबिनहुड कहकर प्रचारित किया था।
5. विपक्ष दूसरे दागी नेताओं पर एक्शन की कर सकता है मांग
बृजभूषण शरण सिंह पर बीजेपी एक्शन लेती है तो उसके ऊपर राजनीति के अपराधीकरण को लेकर सवाल उठने लगेंगे। ऐसे में उन सांसदों पर भी विपक्ष आक्रामक होगा, जो दागी हैं और जिनके ऊपर छोटी या बड़ी अदालतों में केस चल रहे हैं। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 में जीत कर संसद में आए सांसदों में से 233 पर अपराधिक मुकदमे हैं। बीजेपी के 303 सांसदों में से 116 सांसदों पर क्रिमिनल केस हैं। ऐसे में फिर पार्टी को एक नए नैरेटिव का जवाब देना पड़ सकता है। इस समय आनंद मोहन सिंह का मुद्दा चर्चा में है ही।
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